Friday, 26 July 2019

कारगिल विजय दिवस ...

करगिल विजय दिवस ...

गूंज उठी पहाड़ियां, चीख उठे पर्वत
बंदूक गोलियों का नर्तन हुआ जहाँ
देह से बेपरवाह अगम्य चोटियाँ थी 

वीरोचित कर्म बमवर्षण किया जहाँ
लहू का रंग पक्का ठहरा है आज भी
वन्देमातरम ही जिंदाबाद था जहां
दुर्लभ रणसमर समर्पित थी जिन्दगी
जयहिंद जयहिंद का गुजार था जहां
धरा कारगिल की तुम्हें कोटिश: नमन
लहूलुहान देह से तिरंगा लहराया वहाँ
शत शत नमन वीरों को जाँ लुटा गये
सर झुका है विजय बिगुल बजा जहां 

------- विजयलक्ष्मी

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तू बाल बच्चेदार है ....... हट जा पीछे ....... मैं जाऊंगा .
बात 1999 की है .....कारगिल में भीषण युद्ध चल रहा था ......माताओं के लाल तिरंगे में लिपट के घर आ रहे थे .... फिल्मों में जब हीरो गोलाबारी के बीच में हिरोइन को बचाने के लिए आगे बढ़ता है तो सब कुछ बड़ा रोमांटिक लगता है .........पर वहां जब LMG का burst आता है तो अच्छे अच्छों की पैंट खराब हो जाती है .......ऐसा मैंने बहुत से फौजियों के मुह से सुना है ......दीवाली पे जब बच्चे चिटपिटिया ,सुतली बम्ब और अनार जलाते हैं तो मां बाप को चिंता हो जाती है ......अरे ऊंचाई पर ...खड़ी चढ़ाई ......रात का समय ....गोलियों कि बौछार से बचने के लिए ये लोग एक चट्टान कि आड़ लिए हुए थे तभी Lieutenant Naveen के पास एक हथगोला फटा और उनकी एक टांग उड़ गयी .......उनकी चीख सुन कर सूबेदार रघुनाथ सिंह आगे बढे ...पर Capt. Vikram Batra ने रोक दिया .....रघुनाथ बोले सर मुझे जाने दीजिये ......नहीं तो वो मर जायेगा ...... उन्होंने जवाब दिया .......नहीं तू बाल बच्चे दार है ....हट जा पीछे ....मैं जाऊंगा ......फ़ौज में senior का हुक्म मानना ही पड़ता है .....चाहे कुछ भी हो जाए ......सो Capt Batra रेंगते हुए आगे बढे .....lieutenant नवीन के पास पहुचे ही थे कि उन्हें गोली लग गयी...सीने में ....... उन्हें किसी को goodbye कहने का भी मौका नहीं मिला .....
कारगिल युद्ध कि सालगिरह पर करगिल में एक कार्यक्रम में CAPT BATRA के जुड़वां हमशकल भाई VISHAL BATRA भी शामिल हुए ....वहां उन्हें सूबेदार मेजर रघुनाथ सिंह मिल गए......VISHAL BATRA बताते हैं कि रघुनाथ उन्हें देखते ही उनसे लिपट गए और फूट फूट कर रोने लगे ....उन्होंने बताया कि जीवन में आखिरी बार CAPT BATRA ने उनसे ही बात की थी .......तू बाल बच्चे दर है ....हट जा पीछे ....मैं जाऊंगा .......वो गए और फिर तिरंगे में ही लिपट कर वापस आये .......अपने गाँव पालमपुर में वो अक्सर कहा करते थे ........या तो तिरंगा लहरा के आऊंगा ....या तिरंगे में लिपट के आऊंगा .........पर आऊंगा ज़रूर .........
भारत सरकार ने उन्हें अदम्य साहस और शौर्य के लिए राष्ट्र के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परम वीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया .....
जयहिंद !!! जयहिंद की सेना !!!

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लेकर तिरंगा सैनिको की टोलियाँ बढ़ी
माँ भारती के लाल लहूलुहान बोलियाँ चढ़ी
अदम्य साहस जान हथेली पर लिये
मौत का सामान लेकर आगे टोलियाँ चढ़ी
फड़कते बाजूओं की कसम खाते हुए

माँ भारती की आन मान शान जिंदगियाँ चढ़ी
है नमन वीरों को सभी कोटिश: प्रणाम
रणभूमि जिनके लिये आखिरी मुकाम बनी
खेत रहकर वो तो माँ का अभिमान हुए
कफन बाँध सर पर विजय पताका पहाडियाँ चढ़ी

----- विजय लक्ष्मी
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