Monday 29 August 2016

" तेरे लिए खुद ही तेरा नजराना हुआ फिरता हूँ "

" दीवानगी बताऊँ क्या मस्ताना हुआ फिरता हूँ
न हो मुलाक़ात उनसे दीवाना हुआ फिरता हूँ ||

बेख्याली है कि बारिश में भीगता फिरता हूँ
बरसते है बादल जब मस्ताना हुआ फिरता हूँ ||

ख़ामोशी सी छा गयी अनजाना हुआ फिरता हूँ
लगने लगा है खुद से ही बेगाना हुआ फिरता हूँ||

लिखा न जा सके वो अफसाना हुआ फिरता हूँ
फितरत से आजकल शायराना हुआ फिरता हूँ ||

ए जिन्दगी तू कहीं फिर से आकर मिल जा ,,
तेरे लिए खुद ही तेरा नजराना हुआ फिरता हूँ ||"
------- विजयलक्ष्मी

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" अमीर दौलत जोड़ते ,गरीब ढोता लाश ,
विलसित नेता जी हुए, कौन करे प्रकाश ||
चीख-पुकार मची हुई,बाढ़ से परेशान ,
कहो पार कैसे बसे, मच्छर भी हैवान ||
जलथल सारा एक हुआ ,एक दिखे आकाश,
श्मशान तक गायब हैं, सडती मिलती लाश ||
बढ़ी बाढ़ को देखकर,जनता करे पुकार ,
नेता लालू कह रहे, हो गंगा सत्कार ||
बाढ़ राहत योजनाये ,चढ़ी बहुत परवान ,
जनता भूखी मर रही,रोता मिला किसान || "  ——– विजयलक्ष्मी

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 31 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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