नींद खोई नयन से हृदय पर आघात ,
भूल बैठे साँवरे , करते ही नहीं बात .
भूल बैठे साँवरे , करते ही नहीं बात .
स्नेहिल पल मन ढूँढ़ता बीते जो साथ
भरे भवन बैठकर होती गुपचुप बात .
भरे भवन बैठकर होती गुपचुप बात .
दुनिया कैसे जानेगी प्रेम पीर की जात
स्नेह अपवित्र औ छिनाल औरत जात .--- विजयलक्ष्मी
स्नेह अपवित्र औ छिनाल औरत जात .--- विजयलक्ष्मी
विष लगे कुम्भ में कितना भी डालो दूध ,,
हुई लहुलुहान मानवता तुम कैसे धर्मसुत
तुम कैसे धर्मसुत जरा सच को तो आंको
बैठ चौराहे धूर्तता के स्वाभिमान मत ताको --- विजयलक्ष्मी
हुई लहुलुहान मानवता तुम कैसे धर्मसुत
तुम कैसे धर्मसुत जरा सच को तो आंको
बैठ चौराहे धूर्तता के स्वाभिमान मत ताको --- विजयलक्ष्मी
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