मुस्कुराये क्यूँ ?
हंसना हुआ मना
हंस दिए न !
जख्म खाए है
हुयी रुसवाई है
मुस्कुरा तो दो !
आंसू निकले
बही धारा गम की
लब मुस्काए !
रीता बर्तन
रीता सा मन हुआ
भाव बेभाव !
चाह कितना
पूजा कितना तुम्हे
हो पत्थर ही .- विजयलक्ष्मी
हंसना हुआ मना
हंस दिए न !
जख्म खाए है
हुयी रुसवाई है
मुस्कुरा तो दो !
आंसू निकले
बही धारा गम की
लब मुस्काए !
रीता बर्तन
रीता सा मन हुआ
भाव बेभाव !
चाह कितना
पूजा कितना तुम्हे
हो पत्थर ही .- विजयलक्ष्मी
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