कलम से..
Monday, 7 January 2013
पिंजरे की मैना ...
काटकर पंख कहते है उड़ान को ,
पिंजरे की मैंना को बोले बस देखो मचान को .
- विजयलक्ष्मी
झपटने को, ताक में बैठे रहते है तैयार ,
निकले तो सही खोलकर पिंजरे को बाहर .
दिखाते है औकात सुनाकर उल्टी बात ,
उसपर इल्जाम करते बदनाम किस कदर.
- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment