Wednesday 1 January 2020

ये वैश्विक नव कलैंडर वर्ष है यारो ,

ये वैश्विक नव कलैंडर वर्ष है यारो ,
कहानी है कलैंडर बदलाव की
जाम छलक गिरे गिरेबानों में
याद किसे है, मिले आजादी पर घाव की ।

बुरा वक्त था या गुलामी रच गयी लहू में
सच कहना दर्द रिश्ता रहा लम्हा लम्हा
खिलेगा गुल कोई किसी पल महका सा
या दोहराएगा फिर कहानी पुराने घाव सी |

फिर वही आग बिखरी है सडकों पर
फिर वही खंजर पैने होते दिखे मुझे
ख्वाब समझूं या हकीकत .. क्या कहूं
जख्म दुखा सौ गुना देख दुश्मन लश्कर लाव की |

जो छिडक रहा था नमक मेरा ही हाथ था
जिनकी आस्तीनों में छिपा नश्तर साथ था
मैं ढूंढता रहा अपनापन सीने में छिपा
जानता नहीं था उसको मेरी ही मौत की ताब थी |
 
---- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment