कोई बिखेरने की फ़िराक में
कोई समेटने की ..
कोई लिपटने की फ़िराक में
कोई लपेटने की ..
मैं ..भा रत ..भारत में रत हूँ
राष्ट्र विदेह होकर ही सत हूँ
जी हाँ ..मैं प्रहरी ..मैं रक्षक हूँ
मैं ही भारत भाल पर नत हूँ
लुटाकर मिटाकर जो बढ़ता चला
छाती पर दुश्मन की चढ़ता चला
आन .मान , शान पर मरता चला
खुद को निसार करता चला
लहू से श्रृंगार करता चलता
प्रेम की खातिर जलता चला
राष्ट्रहित खुद से मुकरता चला
जी हाँ ...वही सैनिक हूँ
!!जयहिंद , जय भारत !!
----- विजयलक्ष्मी
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