वो इक गुलाब था या काँटा बबूल का ,,
दर्द ए इन्तेहाँ सफर बेवफाई कबूल था ||
जिन्दगी में खफा मौत से किये जुस्तजू
आरजू ए दर्द औ बा-वफाई मशहूर था ||
------- विजयलक्ष्मी
" यूँ अमावस है ठहरी हुई रौशनी को मुद्दते,
न चाँद दिखा गगन में चांदनी को मुद्दतें ||
लगी आग जब , जली चौखटों को मुद्दतें ,
ढूंढते फिरते कहाँ दबी चिंगारी को मुद्दतें ||
इम्तेहान ए वफा यूँ,रही दरकार को मुद्दतें,
पैरहन कैसी कैसी ,यूँ जिंदगानी को मुद्दतें ||
इक चकोरी ढूंढती मिली चकोर को मुद्दतें ,
होश औ हवास बेखबर,इंतजारी को मुद्दतें ||
सलामी दूं किसे मैं यूँ इल्जामात को मुद्दतें,
यूँ बढ़ते कदम औ राह ए रवानी को मुद्दतें ||
कागज की कश्ती इश्क ए नाखुदा को मुद्दतें
ख़ाक ए नजर मिली मेरी गुमनामी को मुद्दतें ||"
-------- विजयलक्ष्मी
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