Wednesday, 16 November 2016

" अपनी जिंदगी का मैं खुद ही कोलम्बस हूँ "

मैं गरीब का बेटा ..
संगिनी मेरी गरीबी है..
मैं चलता हूँ नंगे पांव ..
दर्द मेरा हमसफर है ,
लाचारी बहन मेरी ..
दोस्त गम का साया है ...
झूठ बोला कहने सब ..
वो मुस्कुराया है ..
सच का फंदा है गले में ..
धौंस की दादा गिरी ..
कोई जिन्दा कोई मुर्दा ..
जिंदगी तू है कहाँ ...
क्या यही तेरा रूप रंग है ..
नयनपट जब से खुले ..
धरती बिछौना आकाश कम्बल ..
जमीं पर पैर ..ख्वाब आसमां में है ..
उड़ना ख्वाबों में भी मना मुझे ..
मैं गरीब...
भूखमरी के संग भी जीता हूँ हँस कर ..
ताज्जुब क्यूँ भला ..
मेरा वजूद ही ऐसा है ..
बड़ा होना है मुझे ...
मैं सडको पर पलकर
अपनी जिंदगी का मैं खुद ही कोलम्बस हूँ
.-------- विजयलक्ष्मी

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 18 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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