Monday, 11 November 2019

" देव दीपावली "

त्रिपुरारी पूर्णिमा ...
शिव का त्रिपुरारी स्वरूप ..व .. देव दीपावली .. की बधाई ..
तारकासुर का वध शिव-पुत्र कार्तिकेय जी ने किया था .. उसी तारकासुर के तीन पुत्र थे ,, पिता की हत्या से दुखी उनके गुरु ने उन्हें ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करने के लिए कहा .. जिससे वह अमर होसके .. तब तीनो ने तप किया तथा ब्रह्मा जी से से वरदान माँगा जिसपर ब्रह्मा जी ने असमर्थता जताई तब उन्होंने बहुत अजीब सा वरदान माँगा जिसमे उन्होंने तीन नगरियाँ बसाने की बात कही ,, जिसमे बैठकर वह सभी लोको का भ्रमण कर सके तथा उनके एक सीध में एक आने पर एक ही तीर से तीनो की म्रत्यु जो देव कर सके उन्ही का हाथो म्रत्यु सम्भव होने का वरदान माँगा ,, ब्रह्मा जी ने उन्हें यह वरदान दे दिया ,... तब उन्होंने " मय " को तीन नगरी बनाने के लिए कहा गया ,
तारकासुर के बेटों ने क्रमशः
" तारकाक्ष की स्वर्ण पुरी ,,
कमलाक्ष ने चांदी की पुरी और
विद्युन्माली की लौह-पुरी बनाई गयी .तथा उन्हें वहां का राजा घोषित किया .. इस वरदान के कारण तीनो स्वयम को अजेय और अमर मान बैठे ..तीन पुर के राजा होकर ये त्रिपुरासुर कहलाये गये ..इनके उत्पात से देव मानव सब परेशान थे ..इन्होने देवताओ के साथ युद्ध कर बेदखल करके उनकी सम्पूर्ण सत्ता प्राप्त कर ली ,, देवताओं को घर से बेघर कर दिया तब सभी देव भगवान शिव की शरण में पंहुचे ,, शिव जी को प्रसन्न किया | देवो ने सम्पूर्ण व्यथा क्रमानुसार भगवान को सुनाई ..तत्पश्चात सहायता करने की बात कही ..प्रभु शंकर देवो की सहायतार्थ तैयार थे .... किन्तु दिव्य रथ की बात कही ..जिसके अनुसार सूर्य एवं चन्द्र को पहियों में लगना था ...इंद्र वरुण यम व् कुबेर को घोड़े के स्थान पर ..हिमालय धनुष हुए और शिव रूप स्वयम तीर बने ..अग्नि देव को तीर के अग्रिम नोक पर विराजित किया ...तब इस दिव्य रथारूढ़ शिव युद्ध के लिए उद्यत हुए ..तीनो भाई युद्ध के लिए ललक पड़े ... विनाशकाले विपरीत बुद्धि ... युद्ध रत हो भूल गये की तीनो एक सीध में आने पर मारे जा सकते हैं ... लम्बा युद्ध था अंतत: जैसे ही तीनो एक के पीछे एक हो पंक्तिबद्ध हुए शिव ने बाण छोड़ दिया ... ब्रह्मा जी के वरदान के अनुसार तीनो पुरियों समेत तीनो भाई भी धराशाही हुए ...देवों ने शिव स्तुति की तभी से शिव का एक नाम त्रिपुरारी पड़ गया ...
शिव की नगरी काशी में इसे दीपावली की तरह ही दीपों को प्रज्वलित किया जाता है ..|
त्रिपुरारी ..अर्थात तीन पुरियों के अरि ... शिव |
यह नाम कार्तिक पूर्णिमा केदिन ही पड़ा था शैव इसे बहुत मनोभाव से मनाते हैं |
अन्य पुराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु में मत्स्य अवतार धारण किया था था पृथ्वी की जीवन रक्षा की थी |
इसी दिन सिख सम्प्रदाय केप्रथम गुरु ..गुरु नानक देव जी का जन्मोत्सव भी मनाया जाता है ... |
---- विजयलक्ष्मी

Tuesday, 15 October 2019

वो ताजा चाँद ...

मर्यादित 
आवश्यकता 
और ख़ुशी ..
हाँ ... मैंने ढूंढ ली है 
नमी में ख़ुशी 
पूनम की रात सी 
खिलती चांदनी सी ख़ुशी
तपती रेत की गर्मी में
महसूस की ख़ुशी
मन की भूख में ..
बरसात में ख़ुशी
जेठ की धूप में देखी ख़ुशी
सच कहूं ....
शायद ..मैंने
पढनी सीख ली है ख़ुशी
अभी लिखना बाकी है
मुझे पकडनी सीखनी होगी
एक दिन ..
पिजरे में रख लुंगी ख़ुशी
बिलकुल तुम्हारी तरह ..
किन्तु ...
मुझे साधनी होगी ख़ुशी
बिछड़ना तो न पड़ेगा
खुद से
किसी अर्थ हेतु .
शायद
तब कहीं ....
बहुत बिखरी पड़ी है 

चहुँ ऑर
आओ बैठकर मुस्कुराते हैं
कोई गीत गुनगुनाते हैं 

बसंत के आगमन का 
भरकर तमाम ख़ुशी 
वो ताजा चाँद ...
बिलकुल " तुम सा "

----  विजयलक्ष्मी

जी हाँ ...वही सैनिक हूँ


कोई बिखेरने की फ़िराक में 
कोई समेटने की ..
कोई लिपटने की फ़िराक में 
कोई लपेटने की ..
मैं ..भा रत ..भारत में रत हूँ 

राष्ट्र विदेह होकर ही सत हूँ
जी हाँ ..मैं प्रहरी ..मैं रक्षक हूँ
मैं ही भारत भाल पर नत हूँ
लुटाकर मिटाकर जो बढ़ता चला
छाती पर दुश्मन की चढ़ता चला
आन .मान , शान पर मरता चला
खुद को निसार करता चला
लहू से श्रृंगार करता चलता
प्रेम की खातिर जलता चला
राष्ट्रहित खुद से मुकरता चला
जी हाँ ...वही सैनिक हूँ
!!जयहिंद , जय भारत !
!
----- विजयलक्ष्मी

Friday, 26 July 2019

कारगिल विजय दिवस ...

करगिल विजय दिवस ...

गूंज उठी पहाड़ियां, चीख उठे पर्वत
बंदूक गोलियों का नर्तन हुआ जहाँ
देह से बेपरवाह अगम्य चोटियाँ थी 

वीरोचित कर्म बमवर्षण किया जहाँ
लहू का रंग पक्का ठहरा है आज भी
वन्देमातरम ही जिंदाबाद था जहां
दुर्लभ रणसमर समर्पित थी जिन्दगी
जयहिंद जयहिंद का गुजार था जहां
धरा कारगिल की तुम्हें कोटिश: नमन
लहूलुहान देह से तिरंगा लहराया वहाँ
शत शत नमन वीरों को जाँ लुटा गये
सर झुका है विजय बिगुल बजा जहां 

------- विजयलक्ष्मी

%%%%%%%%%&&&&&&&&&&&&&&&%%%%%%%%%%%&&&&&&&&&

तू बाल बच्चेदार है ....... हट जा पीछे ....... मैं जाऊंगा .
बात 1999 की है .....कारगिल में भीषण युद्ध चल रहा था ......माताओं के लाल तिरंगे में लिपट के घर आ रहे थे .... फिल्मों में जब हीरो गोलाबारी के बीच में हिरोइन को बचाने के लिए आगे बढ़ता है तो सब कुछ बड़ा रोमांटिक लगता है .........पर वहां जब LMG का burst आता है तो अच्छे अच्छों की पैंट खराब हो जाती है .......ऐसा मैंने बहुत से फौजियों के मुह से सुना है ......दीवाली पे जब बच्चे चिटपिटिया ,सुतली बम्ब और अनार जलाते हैं तो मां बाप को चिंता हो जाती है ......अरे ऊंचाई पर ...खड़ी चढ़ाई ......रात का समय ....गोलियों कि बौछार से बचने के लिए ये लोग एक चट्टान कि आड़ लिए हुए थे तभी Lieutenant Naveen के पास एक हथगोला फटा और उनकी एक टांग उड़ गयी .......उनकी चीख सुन कर सूबेदार रघुनाथ सिंह आगे बढे ...पर Capt. Vikram Batra ने रोक दिया .....रघुनाथ बोले सर मुझे जाने दीजिये ......नहीं तो वो मर जायेगा ...... उन्होंने जवाब दिया .......नहीं तू बाल बच्चे दार है ....हट जा पीछे ....मैं जाऊंगा ......फ़ौज में senior का हुक्म मानना ही पड़ता है .....चाहे कुछ भी हो जाए ......सो Capt Batra रेंगते हुए आगे बढे .....lieutenant नवीन के पास पहुचे ही थे कि उन्हें गोली लग गयी...सीने में ....... उन्हें किसी को goodbye कहने का भी मौका नहीं मिला .....
कारगिल युद्ध कि सालगिरह पर करगिल में एक कार्यक्रम में CAPT BATRA के जुड़वां हमशकल भाई VISHAL BATRA भी शामिल हुए ....वहां उन्हें सूबेदार मेजर रघुनाथ सिंह मिल गए......VISHAL BATRA बताते हैं कि रघुनाथ उन्हें देखते ही उनसे लिपट गए और फूट फूट कर रोने लगे ....उन्होंने बताया कि जीवन में आखिरी बार CAPT BATRA ने उनसे ही बात की थी .......तू बाल बच्चे दर है ....हट जा पीछे ....मैं जाऊंगा .......वो गए और फिर तिरंगे में ही लिपट कर वापस आये .......अपने गाँव पालमपुर में वो अक्सर कहा करते थे ........या तो तिरंगा लहरा के आऊंगा ....या तिरंगे में लिपट के आऊंगा .........पर आऊंगा ज़रूर .........
भारत सरकार ने उन्हें अदम्य साहस और शौर्य के लिए राष्ट्र के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परम वीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया .....
जयहिंद !!! जयहिंद की सेना !!!

%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%&&&&&&&&&&&&&&&&&&&%%%%%%%%%%%%


लेकर तिरंगा सैनिको की टोलियाँ बढ़ी
माँ भारती के लाल लहूलुहान बोलियाँ चढ़ी
अदम्य साहस जान हथेली पर लिये
मौत का सामान लेकर आगे टोलियाँ चढ़ी
फड़कते बाजूओं की कसम खाते हुए

माँ भारती की आन मान शान जिंदगियाँ चढ़ी
है नमन वीरों को सभी कोटिश: प्रणाम
रणभूमि जिनके लिये आखिरी मुकाम बनी
खेत रहकर वो तो माँ का अभिमान हुए
कफन बाँध सर पर विजय पताका पहाडियाँ चढ़ी

----- विजय लक्ष्मी
No photo description available.

Thursday, 31 January 2019

और मुस्काती हूँ बैठ

और मुस्काती हूँ बैठ ख्वाब के हिंडोले मैं ,,
रच बस मन भीतर पुष्पित रगों के झिन्गोले में | ----------  विजयलक्ष्मी




इश्क औ गम का रिश्ता भला रिसता क्यूँ हैं ,,
मुस्कुराकर इश्क की चक्की में पिसता क्यूँ है || --- विजयलक्ष्मी




जीना सीखने के बाद भी आहत आहट रुला जाती है ,,
जिन्दगी अहसास के फूल पलको पर खिला जाती है ।।---- विजयलक्ष्मी




नम मौसम को बदलती है उमड़ते अहसास की गर्म चादर ,,
जिसे ओढकर अक्सर मातम भी खुशियों का राग सुनाता है।। ------- विजयलक्ष्मी