Tuesday 18 July 2017

" बर्बर हैं वो ,,"

बर्बर हैं वो ,,
ईमान से ,नाम से 
सिर्फ दूसरों के लिए 
अपने लिए 
जिन्दगी का लुत्फ़ चाहिए 
लेकिन बर्बरता ..
ये गुण या अवगुण
किन्तु रोप दिया है
मन की जमीन पर
किसी बीज की तरह
असर लहू में घुल गया है शायद
बेमानी है
चैन औ शांति
जैसे खरपतवार की तरह
निकल दी छाँट-छांट कर
ज्ञान के नाम पर
बंदूक की गोली
बम फेंकते हैं
पत्थर भी बम बनाकर फेकते हैं
बर्बरता दिखाते लोगो की तरफदारी
ये कौन सा बीज है
क्या नफरत का
या एक धर्म सिद्धांत का
कठिन है
या मुश्किल
सिर्फ दिखाई दे रही है
उन्हें हुकुम है या
मानसिक विकलांग है वो
बर्बर है वो
ईमान से ,नाम से
सिर्फ दूसरों के लिए
अपने लिए भूख
देह की
पेट की
तन की
मन की
सत्ता की
कैसी निर्मम भूख है
या ..
या ...
सभ्यता से उलटी जिन्दगी
फिर से
वही प्रारूप
अँधेरे
हजारों बरस पुराणी तस्वीर
जहां ..
हवस होगी
पशुता होगी
या होगी ..
सदी की सड़ी गली मान्यताएं
सीमाहीन परिस्थति
पतन ही पतन है
सभ्यता को दफनाया जा रहा है
मानुष देह में
बर्बरता ,शोषण ,गुलामी ,अन्धविश्वास
और ...और ..
होगा अनहद दर्द का सैलाब
जहां पशुता जिंदाबाद ||
---- विजयलक्ष्मी

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