" मंजूर हर शिकायत औ शिकवा..
मंजूर न हुआ तेरे रूठने का मंजर ||
मंजूर न हुआ तेरे रूठने का मंजर ||
मुफलिसी का यूँ दर्द नहीं मुझको
मुफलिसी वक्त की बेच आऊं किधर||
मुफलिसी वक्त की बेच आऊं किधर||
जिन्दगी तपती मिली थी धूप में
जिन्दगी में तपिश हुई बिन शजर ||
जिन्दगी में तपिश हुई बिन शजर ||
भीगती थी बारिशें तन्हा वीरान
भागती जिन्दगी लहुलुहान सफर ||
भागती जिन्दगी लहुलुहान सफर ||
बा-शिद्दत बेवफाई देश से किये
शिद्दत से उगाई थी फसल भ्रष्टाचार||
शिद्दत से उगाई थी फसल भ्रष्टाचार||
चरखे से मिली आजादी झूठ निरा
सीचा है लहू से है सबको सब खबर||
सीचा है लहू से है सबको सब खबर||
लिख कागजों पर ईमान खरीदो
उछली है इक नये बाजार की खबर ||
उछली है इक नये बाजार की खबर ||
जिन्हें देशप्रेम की क ख नहीं आई
दौलते खाद में बोए हैं वफा का शजर|| "--- विजयलक्ष्मी
" खबरनवीसों सोचो और पढो खबर अख़बार के हवाले से ,
क्यूँ आजादी की डायरी के पन्ने कुछ ही नाम सम्भाले थे ,
वो कहाँ गये जिन्हें जख्म मिले देह पर और आत्मा पर छाले थे
घर दर छूटे जिनके जिन्दगी के भी पड़े लाले थे
फखत कुछ क्यूँ बाकी जो आजादी से सत्ता सम्भाले थे ..
कौन है जो लगा ..उन्हें ढूँढने के प्रयास में
दफन कर दिए बलिदानों के नाम तक इतिहास में
क्या नेहरु गाँधी ही बस आजादी ले आये है,
उनका वारिस भी तो ढूंढो जो अपनी जान गंवाए हैं
कितने वीरो और वीरांगनाओ ने बरात चढाई आजादी के साथ
और सजाई सेज सुहाग मातृभूमि के साथ
सो गये जो वतन के मतवाले थे ..
इबादत ए इश्क ए वतन...जो भारत पर मिटने वाले थे
उनका क्या देखे ...लड़े या नहीं मगर वसीयत में गद्दी सम्भाले थे "--- विजयलक्ष्मी
दौलते खाद में बोए हैं वफा का शजर|| "--- विजयलक्ष्मी
" खबरनवीसों सोचो और पढो खबर अख़बार के हवाले से ,
क्यूँ आजादी की डायरी के पन्ने कुछ ही नाम सम्भाले थे ,
वो कहाँ गये जिन्हें जख्म मिले देह पर और आत्मा पर छाले थे
घर दर छूटे जिनके जिन्दगी के भी पड़े लाले थे
फखत कुछ क्यूँ बाकी जो आजादी से सत्ता सम्भाले थे ..
कौन है जो लगा ..उन्हें ढूँढने के प्रयास में
दफन कर दिए बलिदानों के नाम तक इतिहास में
क्या नेहरु गाँधी ही बस आजादी ले आये है,
उनका वारिस भी तो ढूंढो जो अपनी जान गंवाए हैं
कितने वीरो और वीरांगनाओ ने बरात चढाई आजादी के साथ
और सजाई सेज सुहाग मातृभूमि के साथ
सो गये जो वतन के मतवाले थे ..
इबादत ए इश्क ए वतन...जो भारत पर मिटने वाले थे
उनका क्या देखे ...लड़े या नहीं मगर वसीयत में गद्दी सम्भाले थे "--- विजयलक्ष्मी
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