माचिस न जला बेकार हो चुकी ,
आजकल आदमी से जलता है आदमी ||
शर्मसार है नाग भी देखकर इंसान
अब तो आदमी को डसता है आदमी ||
तू मन मैला कर न कर फर्क नहीं
कालिख भीतर बसाए घूमता है आदमी ||
जहर देने की जरूरत खत्म हुई
भीतर जहर उठाये फिरता है आदमी ||
इंसानियत का जनाजा खूब उठा यारा
सच का दुश्मन झूठ का पुलिंदा है आदमी || ------ विजयलक्ष्मी
आजकल आदमी से जलता है आदमी ||
शर्मसार है नाग भी देखकर इंसान
अब तो आदमी को डसता है आदमी ||
तू मन मैला कर न कर फर्क नहीं
कालिख भीतर बसाए घूमता है आदमी ||
जहर देने की जरूरत खत्म हुई
भीतर जहर उठाये फिरता है आदमी ||
इंसानियत का जनाजा खूब उठा यारा
सच का दुश्मन झूठ का पुलिंदा है आदमी || ------ विजयलक्ष्मी
बहुत उम्दा !
ReplyDeleteगुस्सा
गणपति वन्दना (चोका )